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॥ ଶ୍ରୀ ରାଧା କୃପା କଟାକ୍ଷ ସ୍ତୋତ୍ର ॥

ମୁନୀନ୍ଦବୃନ୍ଦବନ୍ଦିତେ ତ୍ରିଲୋକଶୋକହାରିଣୀ, ପ୍ରସନ୍ନବକ୍ତ୍ରପଙ୍କଜେ ନିକଞ୍ଜଭୂବିଲାସିନୀ। ବ୍ରଜେନ୍ଦଭାନୁନନ୍ଦିନୀ ବ୍ରଜେନ୍ଦ ସୂନୁସଙ୍ଗତେ, କଦା କରିଷ୍ୟସୀହ ମାଁ କୃପା-କଟାକ୍ଷ-ଭାଜନମ୍॥ (1) ଅଶୋକବୃକ୍ଷ ବଲ୍ଲରୀ ବିତାନମଣ୍ଡପସ୍ଥିତେ, ପ୍ରବାଲଜ୍ଵାଳପଲ୍ଲବ ପ୍ରଭାରୂଣାଂ ଗୋମଲେ। ବରାଭୟସ୍ଫୁରତ୍କରେ ପ୍ରଭୂତସମ୍ପଦାଳୟେ, କଦା କରିଷ୍ୟସୀହ ମାଁ କୃପା-କଟାକ୍ଷ-ଭାଜନମ୍॥ (2) ଅନଂଗରଙ୍ଗମଙ୍ଗଳ ପ୍ରସଙ୍ଗଭଂଗୁରଭ୍ରୁବାଂ, ସୁବିଭ୍ରମ ସସମ୍ଭ୍ରମ ଦୃଗନ୍ତବାଣପାତନୈଃ। ନିରନ୍ତରଂ ବଶୀକୃତ ପ୍ରତୀତନନ୍ଦନନ୍ଦନେ, କଦା କରିଷ୍ୟସୀହ ମାଁ କୃପା-କଟାକ୍ଷ-ଭାଜନମ୍॥ (3) ତଡିତ୍ସୁବଣଚମ୍ପକ ପ୍ରଦୀପ୍ତଗୋରବିଗହେ, ମୁଖପ୍ରଭାପରାସ୍ତ-କୋଟିଶାରଦେନ୍ଦୁମଣ୍ଡଳେ। ବିଚିତ୍ରଚିତ୍ର-ସଞ୍ଚରଚ୍ଚକୋରଶାବଲୋଚନେ, କଦା କରିଷ୍ୟସୀହ ମାଁ କୃପା-କଟାକ୍ଷ-ଭାଜନମ୍॥ (4) ମଦୋନ୍ମଦାତିୟଉବନେ ପ୍ରମୋଦ ମାନମଣିତେ, ପ୍ରିୟାନୁରାଗରଞ୍ଜିତେ କଳାବିଲାସପଣ୍ଡିତେ। ଅନନ୍ୟଧନ୍ୟକୁଞ୍ଜରାଜ କାମକେଲିକୋବିଦେ, କଦା କରିଷ୍ୟସୀହ ମାଁ କୃପା-କଟାକ୍ଷ-ଭାଜନମ୍॥ (5) ଅଶେଷହାବଭାବ ଧୀରହୀର ହାର ଭୂଷିତେ, ପ୍ରଭୂତଶାତକୁମ୍ଭକୁମ୍ଭ କୁମ୍ଭକୁମ୍ଭସୁସ୍ତନୀ। ପ୍ରଶସ୍ତମନ୍ଦହାସ୍ୟଚୂଣପୂଣସୁଖସାଗରେ, କଦା କରିଷ୍ୟସୀହ ମାଁ କୃପା-କଟାକ୍ଷ-ଭାଜନମ୍॥ (6) ମୃଣାଲବାଳବଲ୍ଲରୀ ତରଙ୍ଗରଙ୍ଗଦୋଲତେ, ଲତାଗଲାସ୍ୟଲୋଲନୀଲ ଲୋଚନାବଲୋକନେ। ଲଲଲୁଲମିଲ୍ନମନୋଜ୍ଞ ମୁଗ୍ଧ ମୋହନାଶ୍ରୟେ, କଦା କରିଷ୍ୟସୀହ ମାଁ କୃପା-...

॥ श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र ॥

  मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी। व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१) अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले। वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (२) अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां, सुविभ्रम ससम्भ्रम दृगन्तबाणपातनैः। निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (३) तड़ित्सुवणचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दु मण्ङले। विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलो चने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (४) मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमणि्ते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते। अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (५) अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते, प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी। प्रशस्तमंदहास्यचूणपूणसौख्यसा गरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (६) मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोलते, लतागलास्यलोलनील लोचनावलोकने। ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये, कदा करिष्यसीह म...

सहज सुभाव परयौ नवल किशोरी जू कौ - श्री ध्रुवदास, श्रृंगार शत

  सहज सुभाव परयौ नवल किशोरी जू कौ, मृदुता, दयालुता, कृपालुता की रासि हैं । नैकहूं न रिस कहूं भूले हू न होत सखि, रहत प्रसन्न सदा हियेमुख हासि हैं । ऐसी सुकुमारी प्‍यारे लाल जू की प्रान प्‍यारी, धन्‍य, धन्‍य, धन्‍य तेई जिनके उपासिहैं । हित ध्रुव ओर सुख जहां लगि देखियतु, सुनियतु जहां लागि सबै दुख पासि हैं । - श्री ध्रुवदास, श्रृंगार शत, बयालीस लीला श्री राधा रानी के स्वभाव का वर्णन करते हुए श्री ध्रुवदास जी कहते हैं कि हमारी किशोरीजी का स्वभाव अत्यंत ही सरल और मधुर है और कभी भी इनको क्रोध नहीं आता और निरंतर इनके चेहरे पर मृदु मुस्कान रहती है। यह मृदुता, कृपालुता और दयालुता की साक्षात मूर्ति एवं राशि हैं। यह प्यारे श्री कृष्ण की प्राण से भी अधिक प्यारी हैं और राधा रानी के उपासक धन्य, धन्य, धन्य हैं। ध्रुवदास जी के शब्दों में, ऐसी राधारानी कि उपासना को छोड़कर अन्‍य संपूर्ण सुख, दुख रूप ही हैं। संत: श्री हित ध्रुवदास ग्रंथ:   बयालीस लीला